




जब जुलाई के पहले सप्ताह से अगस्त 2023 के आखिर तक उत्तराखंड में भारी बारिशों का दौर शुरू हुआ, कोटद्वार शहर को एक के बाद एक कई आपदाओं का सामना करना पड़ा। यहां खोह, सुखरो और मालन और पनियाली नदियां बहती हैं। नदियों में बाढ़ आई तो 13 जुलाई को मालन नदी पर बना पुल टूट गया। फिर 28 जुलाई को पनियाली नदी पर बना पुल टूटा। 8 अगस्त की बारिश में खोह नदी पर बने पुल की अप्रोच रोड टूट गई। इसके अलावा कई घरों, छोटे पुलों, सड़क, सुरक्षा दीवारों को नुकसान पहुंचा।
उत्तराखंड राज्य में 15 जून और 15 सितंबर के बीच आपदाओं में लगभग 100 लोग मारे गए, जबकि राज्य में 2023 में अब तक 1,100 से ज्यादा भूस्खलन दर्ज किए जा चुके हैं, जो पिछले आठ वर्षों में सबसे अधिक है।
कोटद्वार निवासी धर्मवीर प्रजापति बाढ़ में आधे बह गए एक घर के सामने खड़े हैं। “8 अगस्त और फिर 13 अगस्त को बादल फटा था”, खोह नदी की ओर इशारा करते हुए वह दिखाते हैं “रास्ते में जो कुछ भी आया, पानी उसे तबाह करता हुआ आगे बढ़ा। कम से कम 40-45 मकान टूट गए। लगता ही नहीं कि यहां कभी कोई मकान रहा होगा”।
कोटद्वार की काशीरामपुर तल्ला बस्ती के बेघर हुए लोग सड़क किनारे अस्थायी प्लास्टिक टेंट लगाकर रह रहे हैं। यहां खेल रही दो बच्चियां सिया कुमारी और रजनी प्रजापति द् थर्ड पोल से कहती हैं “नदी में हमारी स्कूल ड्रेस बह गई इसलिए अब हम स्कूल नहीं जाते”।
चर्चा में आई अवैध रेत खनन की भूमिका
कोटद्वार में हुई भारी तबाही का एक कारण रिकॉर्ड बारिश थी, जिसने नदियों को बाढ़ की स्थिति में ला दिया। लेकिन उत्तराखंड की नदियां लंबे समय से अवैध रेत खनन से संकट में हैं।
जुलाई में, एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें कोटद्वार की विधायक और उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण ने पुलों की स्थिति को नज़रअंदाज़ करने के लिए राज्य के एक वरिष्ठ नौकरशाह की आलोचना की, यहां उन्होंने खनन का उल्लेख भी किया।
नदी के तल से रेत और पत्थरों का खनन ज़्यादातर सीमेंट के उत्पादन के लिए किया जाता है। इसके असर से नदी का तल गहरा होता है और इसमें पानी का प्रवाह तेज होता है। यही बढ़ा हुआ प्रवाह नदी के किनारों का कटाव तेज़ कर सकता है और बाढ़ की स्थिति में मकान, पुल जैसे बुनियादी संरचनाओं को अधिक नुकसान पहुंचा सकता है। 2012 में, देश की नदियों में रेत खनन के विनाशकारी प्रभावों के खिलाफ भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक मामले की सुनवाई के बाद, खान मंत्रालय ने रेत खनन के लिए दिशानिर्देश बनाए। हालिया रिपोर्टिंग से पता चलता है कि उत्तराखंड राज्य ने पिछले कुछ वर्षों में इन प्रतिबंधों को ढीला करने की पैरवी की है और नियमों को नजरअंदाज किया है।
सरकारी एजेंसियां सामूहिक रूप से अवैध खनन को रोकने और उसका पता लगाने में विफल रही हैं..
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की 2022 रिपोर्ट
द् थर्ड पोल से बात करते हुए भूषण कहती हैं: “कोटद्वार में अवैध खनन का मुद्दा हमने लगातार उठाया है। मालन, सुखरो और खोह नदियों में अनियंत्रित खनन किया गया। नदियों में खनन होना चाहिए लेकिन हमें ये समझना होगा कि हम ये कैसे कर रहे हैं”।
प्रजापति के मुताबिक खोह नदी में दिन ही नहीं रात में भी अवैध तरीके से खनन होता है। “खनन की वजह से जगह-जगह छोटे- बड़े पुल टूटे। सुखरो और मालन नदी पर भी पुल इसी वजह से टूटा”।
अगस्त में, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी अवैध खनन के चलते टूटे पुलों को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोटद्वार की मालन, सुखरो और खो नदी में अवैध खनन पर रोक लगाने के आदेश दिए।
सरकार की अपनी रिपोर्टों में समस्याओं का उल्लेख
राज्य सरकार की संस्था उत्तराखंड वन विकास निगम ने मालन में रेत खनन पर 2015 की पर्यावरण मूल्यांकन रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट में नदी बेसिन में अनियमित रेत खनन के परिणामस्वरूप कटाव और बाढ़ का विशेष रूप से ज़िक्र किया गया था। कोटद्वार में रहने वाले सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता मुजीब नैथानी के अनुसार, रिवर ड्रेजिंग और रिवर ट्रेनिंग से जुडे नियम मौजूद होने के बावजूद इनका उल्लंघन किया गया है।
द् थर्ड पोल से बात करते हुए वह कहते हैं: “यहां रिवर ट्रेनिंग के नाम पर हमने अवैध खनन देखा है। कोटद्वार में सबसे पहले नदी के किनारों को खोद कर कमज़ोर किया गया। नदी में कहीं-कहीं 6 मीटर (जबकि सिर्फ 3 मीटर तक की अनुमति है) तक गहराई में खुदाई की गई। अगर रिवर ट्रेनिंग हुई होती तो पानी सीधा आगे बढ़ जाता और नदी के किनारों के एक चौथाई हिस्से को कटने में बहुत समय लगता। लेकिन किनारे तो बचे ही नहीं थे। इसीलिए घरों और अन्य निर्माण तक सीधा कटाव हुआ”।
मुजीब अवैध खनन की शिकायत को लेकर सिंचाई विभाग की ओर से वर्ष 2020 में लिखे गए पत्रों की प्रति भी साझा करते हैं। जिसमें कोटद्वार की नदियों में अवैध खनन की पुष्टि की गई है और बारिश के मौसम में नुकसान का अंदेशा जताया गया है।
उत्तराखंड में अवैध रेत खनन की समस्या कोटद्वार तक ही सीमित नहीं है। इस वर्ष उत्तराखंड विधानसभा पटल पर रखी गई सीएजी रिपोर्ट में उत्तराखंड में अवैध खनन का ब्यौरा दिया गया था। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, “भूविज्ञान और खनन इकाई, जिलाधिकारी, पुलिस विभाग, वन विभाग और परियोजना प्रस्तावक और गढ़वाल मंडल विकास निगम लिमिटेड जैसी सभी सरकारी एजेंसियां सामूहिक रूप से अवैध खनन को रोकने और उसका पता लगाने में विफल रही हैं।” इसमें यह भी कहा गया है कि उत्तराखंड सरकार “भारत सरकार की खनन निगरानी प्रणाली नाम की पहल को पांच साल से अधिक समय से लागू करने में विफल रही है”, और यह कि राज्य सरकार ने खुद राज्य की राजधानी देहरादून में 3.7 मिलियन टन “अवैध रूप से खनन सामग्री” का उपयोग किया है।
हिमालय नीति अभियान के अध्यक्ष और पर्यावरणविद् कुलभूषण उपमन्यू कहते हैं: “सिर्फ मैदानी ही नहीं बल्कि हिमालयी राज्यों में पर्वतीय क्षेत्रों में नदियों में अवैध रेत खनन बडा मुद्दा है। पहाड़ों में ट्रैक्टर से खेती नहीं होती लेकिन खनन के लिए नदियों के किनारों पर ट्रैक्टर घूमते रहते हैं। यह बहुत आकर्षक व्यवसाय बन गया है क्योंकि इसमें कोई निवेश नहीं होता और सरकार भी इस पर कड़ी कार्रवाई नहीं करती”।
उत्तराखंड विधानसभा में पेश की गई सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि अवैध गतिविधियों के लिए कई जुर्माने वसूल नहीं किए गए हैं। इसमें कहा गया है, “इसलिए, [औद्योगिक विकास] विभाग को अवैध खनन/भंडारण पर आवश्यक दंड न लगाने के कारण 1.24 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ।”
हिमाचल प्रदेश में रेत खनन और विनाशकारी बाढ़
इस साल की बाढ़ में उत्तराखंड से भी अधिक पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश प्रभावित हुआ है। राज्य सरकार ने 24 जून से 31 अगस्त 2023 के बीच विनाशकारी बारिश से हुए नुकसान का अनुमान 120 अरब रुपये लगाया है, बाढ के चलते 360 से अधिक लोग मारे गए हैं।
ब्यास नदी का जलस्तर बढने से हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, मंडी, हमीरपुर जिले और आगे पडोसी राज्य पंजाब में बाढ़ आई। ब्यास में अवैध खनन की शिकायतें रही हैं, जिससे नदी अपना मार्ग बदल रही है और बाढ़ आ रही है। पंजाब के 20 जिलों के लगभग 12,000 गांव और 65 लोगों की जान बाढ़ में चली गई। अधिकारियों ने नदी क्षेत्र में अतिक्रमण को आपदा की मुख्य वजह माना है।
हिमाचल प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह द् थर्ड पोल हिंदी को बताते हैं: “राज्य में भारी बारिश के साथ अवैध खनन से बिगड़ा नदियों का स्वरूप भी नुकसान की एक अहम वजह है। किनारे टूटने और नदी की धारा बदलने के चलते कटाव ज्यादा हुआ। इन घटनाओं से सबक लेते हुए 23 अगस्त को हमने ब्यास और उसकी सहायक नदियों पर चल रहे सभी स्टोन क्रशर बंद करवा दिए हैं। हम अन्य नदियों पर चल रहे क्रशर पर भी ऐसी कार्रवाई करेंगे”।
उत्तराखंड के देहरादून में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में वैज्ञानिक और नदी संबंधी प्रक्रिया में विशेषज्ञ डॉ अनिल कुमार अगस्त के दूसरे हफ्ते में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में ब्यास नदी में आई बाढ़ का निरीक्षण कर लौटे। वह बताते हैं कि ब्यास में पंडोह बांध के पास 8-9 मीटर ऊंचाई तक बाढ़ आई।
“खनन की वजह से नदी तल में बड़े-बड़े गढ्ढे बन जाते हैं। अचानक तेज पानी आने पर उसके प्रवाह में बाधा आती है और वहां कई गुना ऊर्जा इकट्ठा हो जाती है”, कुमार द थर्ड पोल को बताते हैं। “खनन के उस प्वाइंट पर नदी मानती है कि उसे बहाव की दिशा बदलनी है। फिर वह कटाव करती है। ये नदी के भीतर ऊर्जा संतुलन की एक प्रक्रिया है”।
कुमार कहते हैं कि हिमालयी नदियों के व्यवहार पर खनन से पड़ने वाले असर को लेकर अधिक अध्ययन की जरूरत है। लेकिन फिलहाल, ये समस्या ऐसी ही रहने वाली है। अगस्त के आखिर में कोटद्वार में, खोह नदी पर बने पुल की टूटी हुई अप्रोच रोड के किनारे ट्रैक्टर-ट्रालियां कतार से खड़ी नजर आईं। इनके बगल में नदी से लाए गए पत्थर के बड़े टुकड़े और बोल्डर पड़े थे। बजरी ढोने के लिए इस्तेमाल होने वाले खच्चर भी यहां खड़े थे।
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