मुख्यमंत्री धामी के खिलाफ माहौल तैयार करने वालों के षड्यंत्र का हुआ पर्दाफाश।

 

उत्तराखंड। इन दिनों प्रदेश में पटवारी परीक्षा में हुए नकल प्रकरण में अबतक धामी सरकार द्वारा ताबड़तोड़ धाकड़ एक्शन करते हुए अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजकर एसआईटी जांच भी गठित की है।
एसआईटी द्वारा भी युवाओं और अभिभावकों की शंकाओं के समाधान के लिए खुला जनसंवाद कार्यक्रम रखा गया है ताकि इस भर्ती से संबंधित जो भी शंकाएं किसी के भी मन में हो उनका निराकरण किया जाय।

अब आप खुद सोचिए ? जब नकल करने वालों के खिलाफ कार्यवाही हो चुकी तो आखिर इतना हल्ला मचाने वाले लोग कौन हैं ?

आइए आपको बताते हैं कि अब आंदोलन की असली वजह क्या है ?
इन हल्ला मचाने वालों में कई तरह के लोग काम कर रहे हैं।

एक वो हैं जो सीएम धामी की छवि को धूमिल करके अपने किसी राजनीतिक आका को सीएम की कुर्सी पर देखना चाहते हैं।
दूसरे वो हैं जो 2027 में विधानसभा चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं।

तीसरे वो लोग हैं जो उत्तराखंड की फिजाओं को नेपाल जैसा बनाना चाहते हैं। जो आजादी आजादी के नाम पर नक्सलवाद फैलाना चाहते हैं। भगवे पर अभद्र टिप्पणी कर सनातन धर्म का अपमान कर रहे हैं।

इन तीन तरह की तिगड़ी वाले लोगों का तारगेट सिर्फ मुख्यमंत्री धामी हैं ।
जबकि ये सर्वविदित है कि मुख्यमंत्री धामी ही पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनके कार्यकाल में नकल माफियाओं के चेहरे उजागर हुए । लोग हाकम सिंह जैसे सफेदपोशों के काले कारनामों के बारे में जान पाए।
मुख्यमंत्री धामी ही नक़लरोधी कानून लाने वाले पहले मुख्यमंत्री हैं।
हरीश रावत के कार्यकाल में दो दो परीक्षाओं में पेपर लीक की घटनाएं हुई। वर्ष 2015-16 में कांग्रेस की तत्कालीन हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में दरोगा के 339 पदों पर गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्याल पंतनगर ने सीधी भर्ती परीक्षा करवाई थी। उस वक्त भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की आशंकाएं जताई गईं लेकिन कार्रवाई के नाम पर शून्य रहा। इसके छह साल बाद 2022 में मामला तब उजागर हुआ जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर अन्य मामलों में हुई कार्रवाई में एक आरोपी केन्द्रपाल ने उगला कि वर्ष 2015-16 की दरोगा भर्ती के साथ ही ग्राम पंचायत विकास अधिकारी (वीपीडीओ) की भर्ती परीक्षा में जमकर धांधली हुई थी। नकल माफिया सादिक मूसा के राइट हैंड केन्द्रपाल से पूछताछ में मिले सुराग की डोर पकड़कर जांच कर रही एजेंसी उस वक्त सकते में आ गई जब पता चला कि वीपीडीओ की भर्ती परीक्षा में धांधली के सूत्रधार उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डा. आरबीएस रावत, सचिव मनोहर सिंह कन्याल और तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक राजेंद्र सिंह पोखरिया ही हैं। आयोग के अध्यक्ष आरबीएस रावत ने ही धांधली की योजना तैयार की थी। बाद में डा. रावत ने तत्कालीन सचिव मनोहर सिंह कन्याल और तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक राजेंद्र सिंह पोखरिया को भी अपने साथ कर लिया और करोड़ों रुपये लेकर कुछ अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाया। अध्यक्ष डा. आरबीएस रावत मुख्यमंत्री हरीश रावत के चहेते अधिकारी थे और उन्होंने ही आयोग में उनकी बतौर अध्यक्ष नियुक्ति की थी। उस वक्त युवाओं को आशंका थी कि भर्ती परीक्षा में जमकर धांधली हुई है लेकिन उनकी मांग को अनसुना कर दिया गया। युवाओं ने गला फाड़-फाड़कर ‘मुख्यमंत्री इस्तीफा दो’ के नारे लगाए पर सरकार के कान में जूं नहीं रेंगी। आज वही हरीश रावत ‘पेपर चोर गद्दी छोड़’ के नारे लगा रहे हैं। वो भी उस मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ जिसने अपने महज 4 साल के कार्यकाल में सरकारी सेवा में रिकार्ड 26025 युवाओं की भर्ती की है। बेरोजगारों को सरकारी नौकरी देने में वह प्रदेश के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों पर भारी पड़े हैं। बाकी सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों के कुल 20 वर्ष के कार्यकाल में महज 11528 युवाओं का ही सरकारी नौकरी पाने का सपना पूरा हो सका। सिर्फ हरीश रावत के कार्यकाल की बात करें तो केवल 2496 युवा ही सरकारी नौकरी पा सके, उनमें भी विवाद रहा। सबसे बड़ी बात है कि धामी सरकार के कालखण्ड में सरकारी विभागों में हुई ये सभी नियुक्तियां निष्कलंक हुईं। पैसों में नौकरी के सौदा की कहीं शिकायत नहीं मिली। योग्य को ही मेहनत का फल मिला। लेकिन अब एक सिरफिरे नकलची की करतूत को टूल बनाकर सियासत के सौदागर युवा शक्ति की भावनाओं से खेल रहे हैं।

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