What is Article 15 of the Constitution?
भारत एक सेक्युलर, डेमोक्रेटिक और रिपब्लिक देश है जिसका संविधान देश के सभी हिस्सों पर विशेष ध्यान देता है और भेदभाव और अन्याय से रहित है। इस संबंध में, संविधान की स्थापना की गई और सुधार किए गए। . चीजें जो कभी-कभी होती हैं. भारत के संविधान की धारा 3 में अनुच्छेद 15 शामिल है जो भारत के आम लोगों के मौलिक अधिकारों और समान अधिकारों से संबंधित है।
संविधान का आर्टिकल 15 क्या हैं?? (What is Article 15 of Indian constitution)
संविधान का आर्टिकल 15 देश में सभी प्रकार के भेदभाव को खत्म करने के लिए बनाया गया था। धर्म, जाति, रंग, लिंग या जन्म स्थान की परवाह किए बिना सभी को समान अधिकार दिए गए हैं। हालाँकि, देश के सामाजिक और शैक्षिक विकास को ध्यान में रखते हुए, आबादी के पिछड़े वर्गों, महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं। इसे समझने के लिए भारतीयों के मौलिक अधिकारों की परिभाषा को समझना भी आवश्यक है क्योंकि यह अनुच्छेद न केवल मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है बल्कि बदलती परिस्थितियों में इन मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के न्याय पर भी निर्भर करता है। . प्रतिनिधि सभा द्वारा प्रस्ताव पारित किये जाने के बाद भी इस अनुच्छेद की सुरक्षा हेतु इसमें कुछ परिवर्तन किये गये।
मौलिक अधिकार क्या हैं? (What is Fundamental Rights)
मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों के अधिकार हैं और उन्हें स्वतंत्र और स्वायत्त जीवन जीने का अधिकार देते हैं। संविधान के भाग III (भाग III), सिद्धांत 12 से 35, सभी में समानता का कानून, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्म और संस्कृति की स्वतंत्रता शामिल है; यह कानून व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था। शांतिपूर्वक एकत्र होने की स्वतंत्रता में किसी भी धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता शामिल है।
मौलिक अधिकार भारत के सभी नागरिकों पर लागू होते हैं, चाहे उनकी त्वचा का रंग, जन्म स्थान, जाति, लिंग या धर्म कुछ भी हो। यदि किसी भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो नागरिक का भी हनन होगा। न्याय पाने के लिए आप सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की परिभाषा और सिद्धांत विभिन्न देशों और उनके संविधानों से प्रभावित हैं, जैसे ब्रिटिश बिल ऑफ़ राइट्स, यूनाइटेड स्टेट्स बिल ऑफ़ राइट्स और फ़्रेंच डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स।
अनुच्छेद 15 का इतिहास और संरचना ( History and structure of Article 15)
29 नवंबर, 1948 को संविधान सभा में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (अनुच्छेद 9 का प्रारूप) पर चर्चा की गई। सभा इस परियोजना से सहमत नहीं थी और कुछ बदलावों की मांग की। कुछ लोगों ने कहा कि परियोजना परिवार और मूल के आधार पर भेदभाव को संबोधित नहीं करती है, जबकि अन्य आम लोगों के लिए पार्क, सड़कें और ट्राम चाहते हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए प्रारूप लेख में कुछ स्थान छोड़ दिया गया। वास्तव में, लेख में प्रयुक्त भाषा सार्वजनिक स्थानों के बारे में सामान्यीकरण करती प्रतीत होती है। इसके अलावा, मसौदा लेख का यह पैराग्राफ महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करता है। इसी प्रकार अनुसूचित जाति एवं जनजाति के प्रस्ताव पर यह बहस हुई कि इस दृष्टिकोण से अनुसूचित जाति एवं जनजाति का अलगाववाद समाप्त हो जायेगा। अनुच्छेद 15(1), (2ए) और (2बी), (3) भारत के संविधान, 1949 के तहत अधिनियमित किए गए थे।
आर्टिकल 15 संरचना ( Article 15 Structure)
आर्टिकल 15 (1): इसके अनुसार राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, रंग, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमे से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा.
आर्टिकल 15 (2a): धर्म, रंग, जाति, लिंग, जन्मस्थान को आधार बनाकर किसी भी व्यक्ति को दूकान, होटल, रेस्टोरेंट, मनोरंजन के स्थान या अन्य किसी भी स्थान पर रोका जायेगा.
आर्टिकल 15 (2b): किसी भी व्यक्ति को कुंए, बावड़ी, घाट, पब्लिक रिसोर्ट या किसी भी पब्लिक प्लेस के उपयोग से रोका नहीं जाएगा, चाहे वो पूरी तरह से राज्य सरकार द्वारा बनाये हो या सरकार का आंशिक योगदान हो.
आर्टिकल 15 (3) – भारत के संविधान में ये आर्टिकल सुरक्षा सम्बंधित मामलों को देखने के लिए शामिल किया गया हैं, इसमें महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया हैं. इस आर्टिकल में कुछ भी राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोकेगा.
आर्टिकल 15 (4) – ना तो इस आर्टिकल में ना ही आर्टिकल 29 के क्लॉज़ (2) में कुछ भी राज्य को अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सामजिक और शैक्षिक सुधार और उन्नति के लिए विशेष प्रावधान बनाने से रोकेगा. इसमें राज्य को समाज के पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति,जनजाति की शिक्षा हेतु और सामजिक विकास का ध्यान रखा गया हैं.
ये क्लोज 1951 में स्टेट ऑफ़ मद्रास और चम्पकम दोराईराजन के मध्य चल रहे केस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर संविधान में जोड़ा गया था.
आर्टिकल 15 (5) – सदन ने संविधान में 93 व संशोधन करते हुए आर्टिकल 15(5) का प्रस्ताव 2005 में रखा था, जिसके अनुसार अनुसूचित जाति और जनजाति एवं सामजिक और आर्थिक पिछड़े वर्ग (सोशली एंड एज्युकेश्नली बैकवार्ड क्लासेज-एसईबीएस) को शिक्षा में समान अवसर दिलाने के लिए शैक्षिक संस्थाओं में आरक्षण दिया जाए. इस आर्टिकल में शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आरक्षण से देश को सशक्त बनाने का प्रयास किया गया हैं, शैक्षिक संस्थाओं में निजी, सरकारी और अर्द्ध-सरकारी सभी संस्थाएं शामिल हैं. इस आर्टिकल में केवल अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित मदरसे को बाहर रखा गया हैं.
ये क्लोज 2006 में 93वें संशोधन में संविधान में जोड़ा गया. इसमें भी पीए इनामदार और स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र के मध्य चले केस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का प्रभाव रहा.
इस तरह ये भी 3 और 4 के क्लॉज के जैसा ही हैं, लेकिन यहाँ नियम कानून के अनुसार बने ना कि किसी एग्जिक्यूटिव ऑर्डर से बने इसके साथ ये भी सच हैं कि आर्टिकल 15 (3) और आर्टिकल 15 (4) दोनों देश में आरक्षण के सन्दर्भ में मील का पत्थर साबित हुए हैं.
आर्टिकल 15 (6)
जनवरी 2019 में संविधान के 103वें संशोधन एक्ट का प्रस्ताव पारित किया गया हैं, जिसमें आर्टिकल 15 में संशोधन होकर 15(6) बना हैं. ये आर्टिकल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को सभी शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए बनाया गया हैं, फिर चाहे वो राज्य द्वारा एडेड हो या अनएडेड (aided or unaided by the State) हो. ये संशोधन उन लोगों को आरक्षण देने के लिए किया गया हैं, जो आर्टिकल 15 (5) और आर्टिकल (4) में शामिल नहीं थे.
आयुष्मान खुराना की आने वाली फिल्म आर्टिकल 15 (Ayushmann Khurrana’s Article 15 Movie review)
2019 की शुरुआत में किए गए बदलावों के अलावा, आर्टिकल 15 हाल ही में आयुष्मान खुराना की आगामी फिल्म के कारण भी चर्चा में है। अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित यह फिल्म उत्तर प्रदेश के बदाऊ कांड की सच्ची कहानी पर आधारित है जिसमें दो दलित महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उनकी हत्या कर दी गई। फिल्म में दो लड़कियों का चित्रण किया गया है जिनके साथ प्रतिदिन तीन रुपये मांगने के कारण सामूहिक बलात्कार किया जाता है और उन्हें फांसी पर लटका दिया जाता है, जिससे समुदाय में भय और आतंक फैल जाता है। आयुष्मान खुराना एक ब्राह्मण पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभाते हैं जो मामले की जांच करता है और न केवल निष्पक्ष जांच करता है बल्कि समाज के कई काले रहस्यों से भी पर्दा उठाता है। फिल्म का नाम आर्टिकल 15 इसलिए रखा गया क्योंकि इसमें आर्टिकल 15 में उल्लिखित समानता के अधिकार और समकालीन भारत में समानता के अस्तित्व पर सवाल उठाया गया था।