पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे सालों से अवैध खनन का कारोबार फूलता-फलता रहा है। अवैध खनन को लेकर अपना दामन बचाते रहने वाले अधिकारी और सफेदपोश पहली बार कैग की जद में आ गए हैं।
कैग की जांच आंखें खोलने वाली है। क्योंकि, वर्ष 2017-18 से वर्ष 2020-21 के बीच 37.17 लाख मीट्रिक टन अवैध खनन की पुष्टि की गई है। इस अवैध खनन से नदियों के पारिस्थितिक तंत्र को पहुंचे नुकसान के अलावा 45.69 करोड़ रुपये के राजस्व की चपत भी लगाई गई है।
अवैध खनन की स्थिति स्पष्ट करने के लिए कैग की टीम ने सौंग, ढकरानी और कुल्हाल क्षेत्र को लिया। परीक्षण अवधि (48 माह) के दौरान ये क्षेत्र खनन के लिए बंद थे। कैग की टीम ने रिमोट सेंसिंग विशेषज्ञों के साथ सेटेलाइट अध्य्यन के साथ धरातलीय सर्वे भी कराया।
अवैध खनन के लिए सिर्फ मानक सीमा (नदी सतह पर 1.5 मीटर तक) को ही लिया गया। इतने सीमित क्षेत्र में ही अवैध खनन का आंकड़ा चौंकाने वाला है। सेटेलाइट अध्य्यन में पाया गया कि कोरोनकाल में लाक डाउन के दौरान भी अवैध खनन जारी रहा। साफ है कि जिस दौर में आमजन को बाहर निकलने पर पुलिस की कार्रवाई का सामना करना पड़ा, उसमें खनन माफिया के लिए आंखें मूंद दी गई।
सरकारी एजेंसियों ने भी की अवैध खनिज की खपत:
कैग ने पाया कि विभिन्न सरकारी निर्माण एजेंसियों ने भी अवैध खनिज का प्रयोग किया। क्योंकि लोनिवि समेत विभिन्न एजेंसियों ने बिना पास के 37.17 लाख मीट्रिक टन सामग्री के उपयोग की अनुमति दी। इस तरह प्रयुक्त सामग्री पर 26.02 करोड़ रुपये की रायल्टी ही जमा कराई जा सकी।
होना यह चाहिए था कि अवैध खनन पर पांच गुना अर्थदंड वसूल किया जाना चाहिए था। जिसके चलते सरकार को 104.08 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा। इसके अलावा लोनिवि के विभिन्न खंडों में अवैध पास भी पाए गए, जिसकी जांच बाकी है।
खनिज सामग्री के 219 विक्रेता, पंजीकृत सिर्फ 34:
कैग ने पाया कि बालू, ग्रिट, पत्थर, बजरी आदि के 219 कारोबारी जीएसटी में पंजीकृत हैं। इसके सापेक्ष जिला खनन कार्यालय में सिर्फ 34 का ही पंजीकरण है। इसके चलते अवैध खनन सामग्री की बिक्री करने वालों को पकड़ने में अधिकारी नाकाम हो रहे हैं।
जिलाधिकारी की भूमिका पर सवाल:
कैग ने कहा कि वर्ष 2017-18 से 2020-21 के दौरान किए गए अवैध खनन के लिए जिलाधिकारी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। इसके अलावा जिला खान अधिकारी, वन विभाग, परिवहन, लोनिवि, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व पुलिस की भूमिका को भी कठघरे में खड़ा किया गया।
कैग ने दिए सुझाव:
खान मंत्रालय और भारतीय खान ब्यूरो की ओर से विकसित की गई खनन निगरानी प्रणाली को अपनाया जाए। उपग्रह आधारित इस प्रणाली में अवैध खनन की निगरानी संभव है।
निर्माण एजेंसियां ठेकेदार को भुगतान से पहले खनन सामग्री के पास की सत्यता की पुख्ता जांच कर लें।
निर्माण एजेंसी, जिला प्रशासन व अन्य विभाग आपस में तालमेल बनाएं। जीएसटी विभाग से भी सहयोग लिया जाए।
ड्रोन के माध्यम से खनन क्षेत्रों की निगरानी कराई जाए।